यह एहसासों कि अनुभूति भी अजीब होती है
रोलर कोस्टर जैसी
कुछ रातों को एहसास होता है
कि आकाश के सभी तारे मेरे अंदर समाएं हैं
उनका नूर पूरी तरह मुझसे चमक रहा है
और कुछ रातों को एहसास होता है
इतनी छोटी हो गयीं हूँ
कि अणुओं के आर पार आसानी से फिसल जाऊं
और खो जाऊं उनके बीच कहीं
कभी बन जाती हूँ एक कागज़ कि गुड़िया
नाज़ुक और खूबसूरत
जो एक झोंके से गिर जाती है
और कभी एहसास होता है
मानो सभी कणों में इस ब्राह्माण की ताकत
समां गयी हो , लोहे की तरह मज़बूत
कभी इतनी तन्हा कि
पूरी दुनिया से अलग एक बुलबुले में
जहाँ न कोई आवाज़ , न रोशनी पहुँच पाती है
और कभी यह ज़िंदगी बन जाती है एक लगातार जश्न
जहाँ दोस्तों की मोहब्बत से हर साँस आती है
कभी इतनी अधूरी कि
अपनी रूह तक साथ नहीं देती
एक अजनबी बन जाती है
और कभी इतनी मुकम्मल
कि पूरी कायनात ही प्रियतम बन जाती है
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रोलर कोस्टर
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